राजस्थान के प्रसिद्ध नृत्य

राजस्थान के प्रसिद्ध नृत्य( famous dances of Rajasthan)



नमस्कार आप सभी का इस ब्लॉग पर स्वागत है आज हम राजस्थान के प्रसिद्ध नृत्यो बारे में जानेंगे तो
 चलिए शुरू करते हैं




राजस्थान के लोक नृत्य राजस्थानी संस्कृति के अनुपम श्रंगार हैं राजस्थान के लोक नृत्य मे लय,ताल, गीत, सूर आदि का सुंदर और संतुलित समन्वय हैं अपनी क्षेत्रीय विशिष्ट वेशभूषा के कारण यह और भी आकर्षक होते हैं इसी प्रकार सामान्य जन द्वारा आनंद व उमंग से भर कर सामूहिक रूप से किए जाने वाले नृत्य को ही लोक नृत्य के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान के लोक  नृत्यों का कोई वैज्ञानिक वर्गीकरण नहीं किया जा सकता यहां हर क्षेत्र में हर जाति में हर हर्षोल्लास के समय कोई न कोई नृत्य होता है



1. भील जनजाति के नृत्य


 भील जनजाति राज्य में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ एवं भीलवाड़ा जिले में पाई जाती हैं ।भील जनजाति में कई तरह के नृत्य प्रचलित हैं, जो मुख्यतः वृत्ताकार पथ पर किए जाते हैं स्त्री पुरुष के सामूहिक नृत्य में आधा व्रत पुरुषों का एवं आधा व्रत स्त्रियों का होता है।
 



👉गैर नृत्यः यह नृत्य मुख्यतः फाल्गुन मास में होली के दूसरे दिन शुरू होकर 15 दिनों तक  भील पुरुषों द्वारा किया जाता है इस नृत्य में   डांसर हाथ में छड़ी लेकर एक दूसरों की छड़ों से टकराते हुए गोल घेरे में नृत्य करते हैं इसमें प्रयुक्त छठ को   खाड़ा  कहते हैं और नाचने वालो गैरिया कहा जाता है
👉गवरी व राई नृत्य: यहां उदयपुर संभाग के भीलो का धार्मिक नृत्य है। यह भाद्रपद माह से अश्विन शुक्ला एकादशी तक नृत्य नाटिका के रूप में मंचित किया जाता है इसके साथ शिव और भस्मासुर की पौराणिक लोक कथा संबंध है। इसके मुख्य पात्र भगवान  शिव होते हैं उनकी अर्धांगिनी गोरी (पार्वती )के नाम के कारण ही इसका नाम गवरी पड़ा। इस नृत्य के केंद्र में पूरिया अर्थात शिव होते हैं।यह नृत्य कई सामाजिक, धार्मिक एवं मनोरंजक प्रसंगों की श्रृंखला के संदर्भ में किया जाता है।

👉युद्ध नृत्य; यह विलो द्वारा सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में दो दल बनाकर तीर कमान भले बरछी और तलवारों के साथ   ताल बद्ध किया जाने वाला नृत्य है।
👉द्वीचकरी नृत्यः विवाह के अवसर पर भील पुरुषों व महिलाओं द्वारा दो व्रत बनाकर किया जाने वाला नृत्य जिस में बाहरी व्रत में पुरुष बाएं से दाएं और तथा अंदर के व्रत में महिलाएं दाएं से बाएं और नृत्य करती हुई चलते हैं लय के विराम पर झटके के साथ गीत व दिशा बदल जाते हैं।
👉घुमरा नृत्य: यह नृत्य बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़, पीपलखूंट, घाटोल व आनंदपुरी,डूंगरपुर जिले के आसपुर, सागवाड़ा व सीमलवाड़ा तथा उदयपुर के कोटडा वह मामेर क्षेत्र की महिलाओं द्वारा ढोल और थाली वाद्ययंत्र के साथ अर्धवृत्त बनाकर घूम घूम कर किया जाने वाला नृत्य हैं। इसमें दो दल होते हैं। एक दल गाता है तथा दूसरा उसकी पुनरावृत्ति करके नाचता है। यह नृत्य  गरासियो के वालर नृत्य के समान होता है।

👉गोसाई नृत्य: यह नृत्य होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाता है यह नृत्य "जोगण माता"को समर्पित है।
👉 पालीनोचः    भीलो में विवाह के अवसर पर आयोजित होने वाले स्त्री पुरुषों के सामूहिक नृत्य को पाली नोच कहा जाता है।
👉 साद: यह भीलो में किया जाने वाला एक आध्यात्मिक एवं धार्मिक नृत्य हैं इसमें तंदूरा व मंजीरे का प्रयोग किया जाता है।


 2.गरासिया जनजाति के नृत्य

 गरासिया जनजाति मुख्यतः सिरोही जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में तथा उदयपुर जिले की गोगुंदा झाडोल फलासिया एवं कोटडा तहसील में पाई जाती हैं आमतौर पर प्राकृतिक वनस्पति एवं खेतीबाड़ी से उदयपुर थी करने वाले यह लोग नृत्य और संगीत के बेहद शौकीन हैं होली वह गणगौर इनके प्रमुख त्योहार हैं इनके अलावा शादी ब्याह के अवसर पर भी स्त्री पुरुष टोलियां बनाकर     आनंदमग्न होकर नृत्य करते हैं।
  इनके नृत्य निम्न है-
👉 वालर नृत्यःमहिलाओं एवं पुरुषों द्वारा सम्मिलित रूप से दो औरतों में अत्यंत धीमी गति से बिना वाद्य यंत्र के किया जाने वाला गरासिया का प्रसिद्ध नृत्य है इसमें गीत अत्यंत लयात्मक होता है।
👉  लूर नृत्य:  लूर गोत्र की गरासिया महिलाओं द्वारा मुख्यतः  मेले व शादी के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य हैं जो कन्या दलों द्वारा संचालित किया जाता है एक दल वर पक्ष दूसरे दल वधू पक्ष से रिश्ते की मांग करते हुए नृत्य करता है
👉कूद नृत्यः गरासिया स्त्रियों को पुरुषों द्वारा सम्मिलित रूप से बिना वाद्य के  पंक्तिबद्ध होकर किया जाने वाला नृत्य है। इसमें तालियों का इस्तेमाल किया जाता है।
 इनके अतिरिक्त अन्य नृत्य निम्न है-


👉गौर नृत्य
👉जवारा नृत्य
👉मोरिया नृत्य
👉रायण नृत्य

  3. कथौड़ी जनजाति के नृत्य

  यह जनजाति  मूलतः महाराष्ट्र से आकर राजस्थान में उदयपुर की झाडोल कोटडा तहसील में बसी हुई हैं यह खेर वृक्ष से कत्था तैयार करते हैं इसी कारण इसका नाम कथौङी पड़ा है।
👉मावलिया नृत्यः
👉होली नृत्यः
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